माता अनुसुइया कहती हैं कि :
जग पतिब्रता चार बिधि अहहीं | बेद पुरान संत सब कहहीं |
उत्तम के अस बस मन माहीं | सपनेहु आन पुरुष जग नाहीं ||
मध्यम परपति देखई कैसें | भ्राता पिता पुत्र निज जैसें |
धर्म बिचारी समुझी कुल रहई| सो निकिष्ट त्रिय श्रुति अस कहहीं ||
बिनु अवसर भी तें रह जोई | जानेहु अधम नारि जग सोई |
पति बंचक परपति रति करई| रौरव नरक कल्प सत परई ||
छन सुख लागि जनम सत कोटि | दुःख न समझु तेहि सम को खोटी |
बिनी श्रम नारि परम गति लहई | पतिब्रत धर्म छाडी छल गहई ||
पति प्रतिकूल जनम जहं जाई | बिधवा होई पायी तरुनाई ||
माता ने कितनी सुन्दर व्याख्या करी है , मन की गति , क्षण भंगुर सुख के लिए अपने नैतिक मूल्यों को त्यागना , ऐसी स्त्री की बाद में होने वाली गति -- माता कहती है की सबसे उत्तम पतिव्रता स्त्री वही है जिसके मन में अपने पति के अलावा और कोई पुरुष कभी आता ही नहीं है | वह अपने पति , अपने घर ,परिवार के उत्थान के अतिरिक्त और कुछ नहीं सोचती वही उत्तम स्त्री है और दूसरी श्रेणी में वह आती है जो किसी भी परपुरुष को अपने पिता भाई या पुत्र के सामान ही जानती है |
जो धर्म को विचार कर और अपने कुल की मर्यादा की खातिर स्वयं को दूषित नहीं करती वह निकृष्ट गति की स्त्री है और सबसे अधम वह है जो मौका न मिलने के कारण और डर के कारण कुछ गलत नहीं करती |
मनोविज्ञान का इतना अच्छा अध्ययन - हम जानते हैं की बहुत से लोग सिर्फ इसीलिए कोई गलत काम नहीं करते की उनको पकडे जाने का डर रहता है , बहुत से लोग यह सोचकर की लोग क्या कहेंगे - अपनी वास्तविकता पर मुखोटा लगाये रहते हैं | उनके मन में इच्छा सब रहती है किन्तु भी या लोकलाज के कारण वे गलत मार्ग पर नहीं जाते | ऐसा सिर्फ स्त्रीयों के ही साथ नहीं है बल्कि पुरुषों के साथ भी है और अगर आज का समाज देखें तो हर मोहल्ले में थोड़ी छानबीन करने पर पता चल जाता है की अमुक स्त्री का अमुक पुरुष के साथ अवैध सम्बन्ध है , लोगों को पता भी रहता है किन्तु कोई कुछ बोलता नहीं है |
माता का कहना है की जो वास्तव में निष्कपट है वही सबसे श्रेष्ठ है , और सत्य भी यही है | बाकी तो सब अपने अन्दर के मायाजाल को ढंकने के आवरण ओढ़कर लोग बैठे रहते हैं की कब मौका मिले और परस्त्री या परपुरुष गामी हो लिया जाय | तो ऐसे लोगों के सही होने का कोई मतलब ही नहीं होता |
स्त्री को तो पति मात्र की सेवा करने से वो मुक्ति सुलभ हो जाती है जो अन्य को कई तप करके भी नहीं होती और उसी को क्षण भर के देहिक सुख लाभ के लिए लोग त्याग देते हैं और बाद में अपने भाग्य को कोसते हैं |
जो जैसा करेगा वैसा भरेगा है | आज के समय में कितने हो परिवारों में यह स्थिति बनी हुई है कोई नहीं जानता किन्तु ये लोग जिए जा रहे हैं -- लोगों को पता चलेगा तो क्या हो जाएगा - यह सोचकर नार्किक जीवन भुगत रहे हैं |
जीवन के हर दुःख का मूल अपना अहम् स्वार्थ छल प्रपंच है --इसको त्याग कर प्रभु श्री राम के चरणों में अपना ध्यान केन्द्रित करें और इस मूर्खतापूर्ण बेमतलब जीवन में प्रभु प्रेम की ज्योति जलाएं .
श्री राम जय राम जय जय राम
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