Sunday, 20 December 2015

रामचरित मानस में स्त्री धर्म और वर्तमान स्थिती-2

धीरज धर्म मित्र अरु नारी | आपद काल परखियही चारी ||
ब्रद्ध रोगबस जड़ धनहीना | अन्ध बधिर क्रोधी अति दीना ||
ऐसेहु पति कर किएँ अपमाना | नारि पाव जमपुर दुःख नाना |
एकई धर्म एक ब्रत नेमा | कायं बचन मन पति पद प्रेमा ||

माता अनुसुइया कहती हैं की स्त्री का सबसे बड़ा धर्म पति की सेवा करना है , तन मन वचन से पति की सेवा ही सर्वोपरी मार्ग है | और जो स्त्री अपने पति का अपमान करती है , भले ही उसका पति अँधा , बहरा , क्रोधी , मूर्ख अथवा निर्धन ही क्यों न हो - वह स्त्री मरणोपरांत नरक में अनेको यातनाएं झेलती है | 

नरक और स्वर्ग किसी ने भी नहीं देखा तो फिर गोस्वामी जी ने ऐसा क्यों लिखा ? वस्तुतः इसका कारण यही हो सकता है की पहले जो विवाह हुआ करते थे उसमें स्त्री की रजामंदी नहीं ली जाती थी , और विवाह के पश्चात स्त्री को उसके हाल पर छोड़ दिया जाता था | जो भी मेरी मंद बुद्धि है उसके अनुसार ही मैं सोच सकता हूँ और प्रभु श्री राम से क्षमा प्रार्थी हूँ यहाँ भी हमेशा ही | 
हमारा धर्म कहता है की दुःख झेलने की शक्ति और सहन शीलता सभी मनुष्यों में होनी चाहिए और दुःख वास्तव में पूर्व जन्म के कर्मों का फल ही हैं और कुछ नहीं , अतः अगर किसी स्त्री को पति इस प्रकार का भी मिलता है तो उसका धर्म है की किसी भी स्थिति में पति का आदर करे क्योंकि यह सब उसके पूर्व्कर्मों के फल से ही हुआ है | और जो भी स्त्री इस धर्म को हर स्थति में पालन करती है उसके भवबंधन ही कट जाते हैं | ऐसा उनका विचार होगा - ये मेरी सोच है | 

मनुष्य  जीवन ही प्रभु प्राप्ति के लिए हुआ है तो फिर सुख दुःख से डरना कैसा ? ये तो सागर है जिसमें कभी सुख की  कभी दुःख की लहरे आनी ही हैं | 

किन्तु आज हम देखते हैं की पति चाहे जैसा भी हो स्त्री क्लेश्कारिणी अधिक होती जा रही है , न की घर परिवार के सुख दुःख के बारे में सोचने वाली | वह अपने मायके को ससुराल में ढो लाती है अर्थात उसके घर वालों का हस्तक्षेप पति के घर में होने लगता है और फिर वोही दुःख भरी कहानी शुरू होती है जिसका अंत न्यायलय में जाकर होता है |
आजकल विवाह करना किसी देश से युद्ध करने से अधिक खतरनाक हो चूका है , युद्ध में तो हार या जीत , जीवन या मरण   होना ही है किन्तु विवाह गलत स्त्री से हो जाय तो रोज़ मरण रोज़ हार रोज़ अपमान ही होना है | और ऐसे जीवन से बेहतर है अकेले रहना और अपने जीवन के लक्ष्य की ओर अग्रसर रहना | 

एक दुश्चरित्र स्त्री  की पत्रिका



अगर देखेंगे तो इस पत्रिका में गुरु उच्च का है और हंस योग बना रहा है , मंगल भी स्वराशी का है और मांगलिक पत्रिका भी नहीं है किन्तु इस जातिका ने अपने पति को इतना अपमानित करा की पति पूर्ण असहाय है और तिल तिल कर जी रहा है सिर्फ इसलिए की वह अपने पुत्र से अत्यधिक प्रेम करता है |





आज तो वह स्त्री अपने पति को त्रास दे रही है किन्तु इसका परिणाम क्या होगा और उसकी संतान पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा यह उसने नहीं सोचा | स्वर्ग हो या नरक - भुगतना सब यहीं पर है | 
तो बात स्त्री धर्म की थी, ऐसी एक नहीं अनेक स्त्रीयां अपने हिन्दू धर्म का नाश कर रही हैं और समाज के विघटन की पूरी कसरतें करने में लगी हुए हैं | क्या इश्वर वास्तव में ऐसी स्त्रीयों को क्षमा करेंगे ? यह उनपर ही निर्भर करता है |

यदि आपको कोई दुःख है तो सिर्फ श्री राम जय राम जय जय राम भजिये और मन से आसक्ति को त्याग दीजिये , समय के साथ सब ठीक हो जाएगा |














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