Saturday, 19 December 2015

रामचरित मानस में स्त्री धर्म और वर्तमान स्थिती -१

प्रभु श्री राम वनवास में ऋषि अत्री के आश्रम  पहुँचते हैं जहां उनकी धर्मपत्नी अनुसुइया सीता माता को पतिव्रत धर्म की सीख देती हैं , वे कहती हैं 

मातु पिता भ्राता हितकारी | मितप्रद सब सुनु राजकुमारी ||
अमित दानि भर्ता बयदेही | अधम सो नारी जो सेव न तेहि ||
 अर्थात , 
माता पिता भाई सब हित करने वाले ही होते हैं , परन्तु ये सब एक सीमा तक ही अच्छा कर सकते हैं  किन्तु पति मोक्ष रूप सुख देने वाला होता है और ऐसे पति की सेवा न करने वाली स्त्री अधम होती है |

और यह सत्य भी है क्योंकि प्रकृति के अनुसार स्त्री और पुरुष एक दुसरे के पूरक होते हैं , आदिकाल से समाज पुरुष प्रधान ही रहा है और स्त्री का सम्मान करने वाला ही रहा है , इतिहास से यह पता चलता है की जिन जिन देशों में औरे समाजों में स्त्री ने अपने धर्म का पालन और अनुशीलन करा वे सदा प्रगति करते गए और जहां स्त्रीयां अपनी मर्यादा से आगे निकल गयीं उस समाज औरे देश के पतन को कोई नहीं रोक पाया | यहाँ तात्पर्य यह कदापि नहीं है की स्त्री पुरुष की सेविका है बल्कि यह है की स्त्री ही अपने पुरुष की सबसे बड़ी सहायिका है और दोनों में बहुत बड़ा फर्क है | शारीरिक संसर्ग की लोलुपता या वासना पहले उतनी नहीं होती थी क्योंकि आरंभिक शिक्षा और संस्कार ही ऐसे होते थे किन्तु अब इस फेसबुक wattsapp के युग में सारी शिक्षा कचरे में जाती जा रही है | महानगर ही नहीं बल्कि छोटे छोटे गाँव में भी बालकों के मन में काम वासना की अधिकता और उत्तेजना सारी नैतिकता को डुबाती जा रही है | 

हिन्दू धर्म में एक से बढ़कर एक उदहारण हैं स्त्रीयों के त्याग बलिदान सहयोग के किन्तु आज उन सबकी  कोई प्राथमिकता ही नहीं बची है | नारी सशक्तिकारण असल में परिवार अशक्तिकरण का हेतु बनता जा रहा है | माता अनुसुइया का कहना बिलकुल ही सही है क्योंकि अगर वास्तविकता के धरातल पर देखें तो परिवार का सृजन स्त्री  अपने पति के साथ ही कर सकती है और सृष्टि चक्र को आगे बढ़ाती है | पति पत्नी के मध्य मानसिक तरंगों का मिलाप और भौतिक सुख और किसी सम्बन्ध में  संभव ही नहीं है - यह सामाजिक संरचना ही ऐसी है किन्तु आज की स्थति में पति पत्नी के मध्य अधिकतर दुःख , संवादहीनता , इर्ष्या ही प्रायः देखने को मिलती है तो सुख और संतोष कैसे आएगा ? और सुख और संतोष ही वे दो भाव हैं जिनसे मनुष्य माया के जाल को काट पाता है और प्रभु के चरणों में अपनी ऊर्जा लगा पाता है |

जब नींव ही नहीं बची तो ईमारत कहाँ से खड़ी होगी ?

                            प्रभु श्री राम चन्द्र की जय , श्री राम जय राम जय जय राम 

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