प्रभु श्री राम कहते हैं की जिसके पास भी नौ में से एक भी भक्ति पूर्ण होती है वही उनको अत्यंत प्रिय है तो जिनके पास सम्पूर्ण होती होगी उनके लिए प्रभु क्या नहीं कर सकेंगे ?
नवधा भगति कहऊं तोहि पाहीं | सावधान सुनु धरु मन माहीं ||
प्रथम भगति संतन्ह कर संगा | दूसरी रति मम कथा प्रसंगा ||
गुरु पद पंकज सेवा तीसरी भगति अमान |
चौथी भगति मम गुन गन करई कपट तजि गान ||
मन्त्र जाप मम द्रढ़ बिस्वासा | पंचम भजन सो बेद प्रकासा ||
छठ दम सील बिरति बहु करमा | निरत निरंतर सज्जन धर्मा ||
सातवं सम मोहि मय जग देखा | मोंसे संत अधिक करी लेखा |
आंठव जथालाभ संतोषा | सपनेहूँ नहिं देखई परदोषा ||
नवम सरल सब सन छलहीना | मम भरोस हियं हरष न दीना |
नव महूँ एकउ जिन्ह के होई | नारि पुरुष सचराचर कोइ ||
सोई अतिसय प्रिय भामिनी मोरें | सकल प्रकार भगति द्रढ़ तोरें |
जोगि ब्रंन्द दुर्लभ गति जोई | तो कहुं आजु सुलभ भई सोई ||
मेरे आपके प्रभु श्री राम कहत हैं की प्रथम भक्ति है संतों का सत्संग और दूसरी भक्ति है मेरे कथा प्रसंगों में प्रेम , तीसरी भक्ति है अभिमान रहित होकर गुरु के चरणकमलों की सेवा और चौथी भक्ति है कपट छोड़कर मेरे गुण समूहों का गान | "राम मन्त्र" का जाप और मुझमें द्रढ़ विश्वास यह पांचवीं भक्ति है | छठी भक्ति है इन्द्रियों का निग्रह , शील , बहुत से कार्यों से विरक्ति या अनासक्ति , और हमेशा निरंतर संत पुरुषों के आचरण में लगे रहना |
सातवीं भक्ति है जगत भर को सम भाव से मुझमे ओतप्रोत देखना और संतों को मुझसे भी अधिक मानना | आठवीं भक्ति है जो कुछ मिल जाय उसी में संतोष करना और स्वप्न में भी पराये दोषों को न देखना | नवीं भक्ति है सरलता और सबके साथ कपट रहित बर्ताव करना , ह्रदय में मेरा भरोसा रखना और किसी भी अवस्था में हर्ष और विषाद के अधीन नहीं होना |
इन नवों में से जिसके पास एक भी होती है वह स्त्री पुरुष जड़ चेतन कोई भी हो तो मुझे वही अत्यंत प्रिय है |
जितने भी प्रभु के अवतार हुए हैं उनमें से श्री राम अवतार ही एकमात्र है जिसमें मनुष्य के सद्चरित्र होने पर अत्यधिक बल दिया गया है , मन में प्रेम दया निश्छलता और निष्कपट भाव को प्रधानता दी गयी है |
आपको मुझे हम में से किसी को भी किस टोन टोटके की ज़रुरत नहीं है बस मन को सरल रखना है और जीवन में संतोष को सर्वोपरी रखना है | जो कुछ भी घटित हो रहा है उसे प्रभु का करा हुआ ही जानकर निर्लिप्त होकर उसे पूर्ण विश्वास से स्वीकारना ही श्री राम की भक्ति है -- ऐसा मेरी मंद बुद्धि को प्रतीत होता है | क्योंकि अगर कुछ आवेश अच्छा या बुरा आया भी तब भी क्या फर्क पड़ जाएगा ? जो होना है उसे कोई रोक नहीं सकता और जो नहीं होना है उसे कोई ला नहीं सकता - तो फिर कैसा हर्ष और क्षोभ ?
मैं दिल्ली में जहां रहता हूँ वहां एक साईं मंदिर है जिसके आसपास कोई भी सामिष भोजन की दूकान नहीं है | कारण यहाँ के लोग डर के कारण नहीं खोलते और जो दूसरी दुकानें हैं वहाँ पूरी घपले बाजी है | इश्वर ने कभी नहीं कहा की ये मत खाओ वो मत पियो मगर पूरा जोर इसपर रहा की मन को साध कर रखो ---अगर लाखों की लाटरी भी लग जाए तो भी प्रसन्न होने की कोई ज़रुरत नहीं और लाखों डूब भी जाएँ तो भी दुखी होने का कोई कारण नहीं है .
मगर धर्म के ठेकेदारों ने इश्वर को भी बाजारू बना डाला है , दिन बाँध दिए हैं - सोमवार शिवजी का मंगलवार हनुमान जी का वगेरह वगेरह और इन सब के पीछे मात्र धन लोलुपता है और कुछ नहीं | मेरा मानना है की अपनी अंतरात्मा में जो साफ़ नहीं है , जिसका मन दुसरे के धन , लाभ, प्रशंसा को देखकर जलता है , जो ईर्ष्यालु है वो कोई भी हो धार्मिक नहीं है और राम जी का प्यारा नहीं है | जीवन का ध्येय उस प्रभु की प्राप्ति में होना चाहिए न की गाडी घोड़े कोठी बंगले आदि की प्राप्ति में |
फर्क क्या पड़ना है -- जो अधिक धनि है उसने भी उसी नाक से सांस लेनी है और जो अत्यल्प है उसने भी , धन से कुछ भी ऐसा नहीं हो सकता जिस से मन में सुख और संतोष पनप सके | मन में सुख सिर्फ प्रभु की भक्ति से ही आता है किन्तु निश्छल निष्कपट भक्ति से फिर चाहे आप श्री राम को मानिए , जीसस को या अल्लाह को , अगर मन साफ़ है तो सब अच्छा है नहीं तो सब व्यर्थ है |
कामना से द्वेष जन्म लेता ही है चाहे आप कितना भी रोक लो , अगर कामना ही समाप्त हो जाए तो सारे मार्ग आसान हो जाते हैं |
मन में यह द्रढ़ निश्चय होना चाहिए की जो भी हो रहा है उसी प्रभु के किये के अनुसार ही हो रहा है , और उस प्रभु ने हमारे ही पूर्व कर्मों के आधार पर हमको यह जीवन प्रदान किया है | आप कुछ भी खाते हों पीते हूँ उसका किसी भी भगवान् से कोई लेना देना नहीं है , जितने भी पदार्थ धरती पर हैं उसी प्रकृति के बनाये हुए हैं और जिनको हम सोचते हैं की हमने बनाया है - वोह बनाने की बुद्धि भी उसी प्रकृति और इश्वर की दी हुई है तो हमारी कैसे हुई ?
जीवन में कर्म को कभी नहीं त्यागना चाहिए लेकिन कुछ पाने के लिए अनुचित मार्ग अपनाना कभी नहीं चहिये |
थोड़े समय की प्रसन्नता तो मिल जायेगी किन्तु जो जन्मों के दुःख बाद में आयेंगे उनका हिसाब चुकाते चुकाते सदियाँ बीत जायेंगी |
श्री राम जय राम जय जय राम