Saturday, 4 June 2016

EGO: The sure killer of peace and tranquility

We have been reading in our text books and have been listening on television from religious and spiritual marketeers that Ego is very bad and one should not have it in order to attain peace and salvation. But is it so?

I live in this city called Delhi and daily i see that people are fighting with people for the most stupid reasons one can think of , and just to show their supremacy. Delhi is the capital of Delhi and that is the only reason many poeple have to come here, there are lots of jobs in and around delhi but let me tell you this- the people of Delhi are the worst I have ever seen in this country and I have been to almost all the good places this nation has to offer, People have no sense of talking walking eating and will do anything as they wish and if they are doing wrong  and you tell them then you have to bear the shit coming out from their mouth.

People are show-of`s to the extent that each home has 4-5 vehicles and in many homes the residents are 3-4 only. What will they do with so many cars? eat it or shove it in their ass ?  The funny part is most of these vehicles are on loans and many people have even defaulted with banks.I think it is the people of delhi because of which the banks started using pressure tactics to get their money out which spread to the entire nation.

 Ego is so much not only in lower class but upper class and all class of people are filled with ego - for what they dont know- some are just barking that they are from a certain cast so they are better and some becuase of money and some muscle and some for else but these assholes forget that one day they are going to die and nothing will be left here. There will be no one to remember them and mostly people will thank god for this act of his.

Why cant people be polite humble and thankful towards God and other human beings? what exactly separate a human from a different human? why take pride in things which will decay after a time? I am sure wealth cannot be the criteria..after a certain level - all humans can enjoy the same goodies which are in general available, so what if many are deprived of the premium luxuries of life> that does not makes them a ;lesser person.

It is true that in today`as world it is necessary to earn money to make a good living but how come making a good living can mean be boasting about oneself and show others down ? thats simply bitchy behavior. You are making your earning and other is making his - why compare in the first place? comparison leads to many bad things in life.  And to compare one with another actually is a bad deed generated out of one`s Ego.

I am always supportive of people making a good living but i hate those creatures - how can they be humans? those who think that they are the richest and others should bow in front of them, those who think that they are from high cast and so on -- Delhi is a place where most of the people are illiterate assholes rich due to their ownership of lands. by selling lands people who cannot speak a to z or ka kha ga properly acquire commodities and these commodities make them think that they are superior.

In reality they are still donkeys they were before.

in Geeta or Ramayana a very strong stress is given to become egoless and this is the reason- it takes you only down and never anywhere else.

One can feel proud if he starts eating from ear and smelling from hands  -- it will be super natural powers -- but otherwise what is the point?

I have met so many people in my life, since my profession makes me meet and talk to a vast variety in society and the most important thing I saw is everyone wants to become better than other adn show them down, make more money and live more luxuriousl;y but no one wants to be humble , benevolent, kind god fearing

Obvioulsy they are all sad people because they instead of going after the real thing- they run afetr the foolish things of life.










Saturday, 26 December 2015

मोदी जी की पाकिस्तान यात्रा

अभी कुछ दिन पहले  भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी अचानक पाकिस्तान चले गए | मुझे तो देखकर बहुत हर्ष हुआ , लेकिन टीवी पर दूसरे दल के नेताओं की बकवास देखकर बड़ा अजीब लगा | खुद से तो कुछ करते बनता नहीं , धर्म जाती के नाम पर जनता को मूर्ख बना कर अपनी रोजी रोटी धका रहे हैं और कोई कुछ कर रहा है तो मिर्ची लग रही है |

हमारे नेता इतने सड़े हुए हैं की देखने का भी मन नहीं करता , न बोलने की तमीज न किसी का अच्छा सोचने की न देश का भला करने की इच्छा |
ऐसे में अगर कोई कुछ अच्छा कर रहा है तो कम से कम उसमें से तो बुराई नहीं निकालनी चाहिए थी मगर कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं होती वैसे ही इनका भी कुछ नहीं हो सकता | आप चले जाते और कुछ करके आते श्रीमान लोगों बजे मुह से जुगाली करने के अलावा भी कुछ करना सीख लो | आने वाला समय बहुत ही खराब होने वाला है यह सत्य है , देश की राजनीति में सत्ता के लोलुप पशुओं की बहुत तादाद हो चुकी है और उसको निराकरण बहुत ज़रूरी है | | सबसे ज्यादा तो इन लोगों को यह गम खाए जा रहा है की अभी तक मोदी सरकार का कोई बड़ा घोटाला सामने नहीं आया , अरे भाई नहीं हुआ इसलिए नहीं आया -- पहले वालों के तो अभी तक पता नहीं क्या क्या बातें सामने आ रही हैं |

मतलब किसी को काम करने ही मत दो | हर जगह अपनी फांस फंसा के रखो | देश को जितना हो सके उतना पीछे धकेलो |

कन्या के विवाह में विलम्ब ? यह उपाय कीजिये

जिन लड़कियों की किसी भी कारण से शादी नहीं हो पा रही है , आखिरी समय पे बात समाप्त हो रही है, विलम्ब हो रहा है उनको चहिये की इस पाठ को रोज़ माँ दुर्गा के मंदिर में प्रातः निवृत्त होकर करना शुरू करें | यह पाठ बहुत ही चमत्कारी है और इसको करते समय मन में माँ सीता की छवि होनी चाहिए और प्रेम और श्रद्धा का भाव होना चाहिए | सच्चे मन से कोई इसको करना शुरू करेगा तो उसका विवाह अवश्य होगा इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए |मन में स्वार्थ नहीं होना चाहिए , जल्दीबाजी नहीं होनी चाहिए और श्रद्धा पूर्ण होनी चाहिए |

जय जय गिरिबरराज किसोरी ! जय महेस मुख चंद चकोरी !!
जय गजबदन षडानन माता !जगत जननी दामिनी दुति गाता !!
नहिं तव आदि मध्य अवसाना !अमित प्रभाऊ बेदु नहीं जाना !!
भाव भाव बिभव पराभव कारिनि !बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनी !!
पतिदेवता सुतीय महुं मातु प्रथम तव रेख !
महिमा अमित न सकहिं कहि सहस सरदा सेष !!
सेवत तोही सुलभ फल चारी ! बरदायनी पुरारी पिआरी !
देबी पूजी पद कमल तुम्हारे ! सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे !!
मोह मनोरथ जानहु नीकें ! बसहु सदा उर पुर सबही कें !!
कीनेहू प्रगट न कारन तेहि !अस कही चरण गहे बैदेहीं !!
बिनय प्रेम बस भई भवानी ! खसी माल मूरति मुसुकानी !
सादर सियं प्रसादु सिर धरेऊ ! बोली गौरी हरषु हियं भरेऊ !!
सुन सिय सत्य असीस हमारी ! पूजिहि मन कामना तुम्हारी !
नारद बचन सदा सूचि साचा !सो बरु मिलिहि जाहीं मनु राचा !!
मनु जाहीं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर सांवरो !
करुना निधान सुजान सीलू सनेहू जानत रावरो !!
एही भांति गौरी असीस सुनी सिय सहित हियं हरषीं अली !!
तुलसी भवानिहि पूजी पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली !!
जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाई कहि !

मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे !!  (२३६ ) 
 श्री राम जय राम जय जय राम 

Sunday, 20 December 2015

प्रभु श्री राम की नवधा भक्ति

प्रभु श्री राम कहते हैं की जिसके पास भी नौ में से एक भी भक्ति पूर्ण होती है वही उनको अत्यंत प्रिय है तो जिनके पास सम्पूर्ण होती होगी उनके लिए प्रभु क्या नहीं कर सकेंगे ?

नवधा भगति कहऊं तोहि पाहीं | सावधान सुनु धरु मन माहीं ||
प्रथम भगति संतन्ह कर संगा | दूसरी रति मम कथा प्रसंगा ||

गुरु पद पंकज सेवा तीसरी भगति अमान |
चौथी भगति मम गुन गन करई कपट तजि गान ||

मन्त्र जाप मम द्रढ़ बिस्वासा | पंचम भजन सो बेद प्रकासा ||
छठ दम सील बिरति बहु करमा | निरत निरंतर सज्जन धर्मा ||

सातवं सम मोहि मय जग देखा | मोंसे  संत अधिक करी लेखा |
आंठव जथालाभ संतोषा | सपनेहूँ नहिं देखई परदोषा ||

नवम सरल सब सन छलहीना | मम भरोस हियं हरष न दीना |
नव महूँ एकउ जिन्ह के होई | नारि पुरुष सचराचर कोइ ||

सोई अतिसय प्रिय भामिनी मोरें | सकल प्रकार भगति द्रढ़ तोरें |
जोगि ब्रंन्द दुर्लभ गति जोई | तो कहुं आजु सुलभ भई सोई ||

मेरे आपके प्रभु श्री राम कहत हैं की प्रथम भक्ति है संतों का सत्संग और दूसरी भक्ति है मेरे कथा प्रसंगों में प्रेम , तीसरी भक्ति है अभिमान रहित होकर गुरु के चरणकमलों की सेवा और चौथी भक्ति है कपट छोड़कर मेरे गुण समूहों का गान | "राम मन्त्र" का जाप और मुझमें द्रढ़ विश्वास यह पांचवीं भक्ति है | छठी भक्ति है इन्द्रियों का निग्रह , शील , बहुत से कार्यों से विरक्ति या अनासक्ति , और हमेशा निरंतर संत पुरुषों के आचरण में लगे रहना |
सातवीं भक्ति है जगत भर को सम भाव से मुझमे ओतप्रोत देखना और संतों को मुझसे भी अधिक मानना | आठवीं भक्ति है जो कुछ मिल जाय उसी में संतोष करना और स्वप्न में भी पराये दोषों को न देखना | नवीं भक्ति है सरलता और सबके साथ कपट रहित बर्ताव करना , ह्रदय में मेरा भरोसा रखना और किसी भी अवस्था में हर्ष और विषाद के अधीन नहीं होना | 

इन नवों में से जिसके पास एक भी होती है वह स्त्री पुरुष जड़ चेतन कोई भी हो तो मुझे वही अत्यंत प्रिय है |


जितने भी प्रभु के अवतार हुए हैं उनमें से श्री राम अवतार ही एकमात्र है जिसमें मनुष्य के सद्चरित्र होने पर अत्यधिक बल दिया गया है , मन में प्रेम दया निश्छलता और निष्कपट भाव को प्रधानता दी गयी है |

आपको मुझे हम में से किसी को भी किस टोन टोटके की ज़रुरत नहीं है बस मन को सरल रखना है और जीवन में संतोष को सर्वोपरी रखना है | जो कुछ भी घटित हो रहा है उसे प्रभु का करा हुआ ही जानकर निर्लिप्त होकर उसे पूर्ण विश्वास से स्वीकारना ही श्री राम की भक्ति है -- ऐसा मेरी मंद बुद्धि को प्रतीत होता है | क्योंकि अगर कुछ आवेश अच्छा या बुरा आया भी तब भी क्या फर्क पड़ जाएगा ? जो होना है उसे कोई रोक नहीं सकता और जो नहीं होना है उसे कोई ला नहीं सकता - तो फिर कैसा हर्ष और क्षोभ ?

मैं दिल्ली में जहां रहता हूँ वहां एक साईं मंदिर है जिसके आसपास कोई भी सामिष भोजन की दूकान नहीं है | कारण यहाँ के लोग डर के कारण नहीं खोलते और जो दूसरी दुकानें हैं वहाँ पूरी घपले बाजी है | इश्वर ने कभी नहीं कहा की ये मत खाओ वो मत पियो मगर पूरा जोर इसपर रहा की मन को साध कर रखो ---अगर लाखों की लाटरी भी लग जाए तो भी प्रसन्न होने की कोई ज़रुरत नहीं और लाखों डूब भी जाएँ तो भी दुखी होने का कोई कारण नहीं है .

मगर धर्म के ठेकेदारों ने इश्वर को भी बाजारू बना डाला है , दिन बाँध दिए हैं - सोमवार शिवजी का मंगलवार हनुमान जी का  वगेरह वगेरह और इन सब के पीछे मात्र धन लोलुपता है और कुछ नहीं | मेरा मानना है की अपनी अंतरात्मा में जो साफ़ नहीं है , जिसका मन दुसरे के धन , लाभ, प्रशंसा को देखकर जलता है , जो ईर्ष्यालु है वो कोई भी हो धार्मिक नहीं है और राम जी का प्यारा नहीं है | जीवन का ध्येय उस प्रभु की प्राप्ति में होना चाहिए न की गाडी घोड़े कोठी बंगले आदि की प्राप्ति में | 

फर्क क्या पड़ना है -- जो अधिक धनि है उसने भी उसी नाक से सांस लेनी है और जो अत्यल्प है उसने भी , धन से कुछ भी ऐसा नहीं हो सकता जिस से मन में सुख और संतोष पनप सके | मन में सुख सिर्फ प्रभु की भक्ति से ही आता है किन्तु निश्छल निष्कपट भक्ति से फिर चाहे आप श्री राम को मानिए , जीसस को या अल्लाह को , अगर मन साफ़ है तो सब अच्छा है नहीं तो सब व्यर्थ है | 

कामना से द्वेष जन्म लेता ही है चाहे आप कितना भी रोक लो , अगर कामना ही समाप्त हो जाए तो सारे मार्ग आसान हो जाते हैं |

मन में यह द्रढ़ निश्चय होना चाहिए की जो भी हो रहा है उसी प्रभु के किये के अनुसार ही हो रहा है , और उस प्रभु ने हमारे ही पूर्व कर्मों के आधार पर हमको यह जीवन प्रदान किया है | आप कुछ भी खाते हों पीते हूँ उसका किसी भी भगवान् से कोई लेना देना नहीं है , जितने भी पदार्थ धरती पर हैं उसी प्रकृति के बनाये हुए हैं और जिनको हम सोचते हैं की हमने बनाया है - वोह बनाने की बुद्धि भी उसी प्रकृति और इश्वर की दी हुई है तो हमारी कैसे हुई ?

जीवन में कर्म को कभी नहीं त्यागना चाहिए लेकिन कुछ पाने के लिए अनुचित मार्ग अपनाना कभी नहीं चहिये |

थोड़े समय की प्रसन्नता तो मिल जायेगी किन्तु जो जन्मों के दुःख बाद में आयेंगे उनका हिसाब चुकाते चुकाते सदियाँ बीत जायेंगी | 

                                                 श्री राम जय राम जय जय राम 

   

 
 
 

श्री राम स्तुति अत्रि मुनि द्वारा

जय जय श्री राम 


पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से इस स्तुति का पाठ सभी के लिए हितकारी होगा और वह व्यक्ति प्रभु श्री राम को ही प्राप्त होगा  == ऐसा मुनि अत्रि का वचन है 



प्रभु आसन आसीन भरि लोचन सोभा निरखि |
मुनिबर परम प्रबीन जोरी पानी अस्तुति करत ||

>>>        
नमामि भक्त वत्सलं | कृपालु शील कोमलं |
भजामि ते पदाम्बुजम | अकामिनाम स्वधामदं ||

निकाम श्याम सुन्दरम | भावंभुनाथ मंदरं |
प्रफुल्ल कंज लोचनं | मदादि दोष मोचनं ||

प्रलम्ब बाहू विक्रमं | प्रभो s प्रमेय वैभवं |
निषंग चाप सायकं | धरं त्रिलोक नायकं ||

दिनेश वंश मंडनं | महेश चाप खंडनं |
मुनीन्द्र संत रंजनं | सुरारी वृन्द भंजनं ||

मनोज वैरी वंदितं | अजादि देव सेवितं |
विशुद्ध बोध निग्रहं | समस्त दूषनापहम||

नमामि इंदिरा पतिं | सुखाकरं सतां गतिम् |
भजे सशक्ति सानुजं | शची पति प्रियानुजं ||

त्व्दंघ्री मूल ये नराः | भजन्ति हीन मत्सरा : |
पतन्ति नो भवार्णवे | वितर्क वीचि संकुले ||

विविक्त वासिनः सदा | भजन्ति मुक्तये मुदा |
निरस्य इंद्रियादिकं | प्रयान्ति ते गतिम् स्वकं ||

तमेकमद्भुतं प्रभुं | निरीह्मिश्वरम विभुं |
जगद्गुरूम च शाश्वतं | तुरीयमेव केवलं ||

भजामि भाव वल्लभं | कुयोगिनाम सुदुर्लभं |
स्वभक्त कल्प पादपं | समं सुसेव्यमंव्हम ||

अनूप रूप भूपतिम | नतोःमुर्विजपतिम |
प्रसीद में नमामि ते | पदाब्ज भक्ति देहि में ||

पठन्ति ये स्तवं इदं | नरादरेण ते पदं |
व्रजन्ति नात्र संशयं | त्वदीय भक्ति संयुताः ||

>>>>>>>>
बिनती करी मुनि नाई सिरु कह कर जोरी बहोरी |
चरन सरोरुह नाथ जनि  कबहूँ तजै मति मोरी ||


                                                श्री राम जय राम जय जय राम 



 


: राम चरित मानस में पतिव्रता स्त्री के लक्षण :

माता अनुसुइया कहती हैं कि :

जग पतिब्रता चार बिधि अहहीं | बेद पुरान संत सब कहहीं |
उत्तम के अस बस मन माहीं | सपनेहु आन पुरुष जग नाहीं ||

मध्यम परपति देखई कैसें | भ्राता पिता  पुत्र निज जैसें |
धर्म बिचारी समुझी कुल रहई| सो निकिष्ट त्रिय श्रुति अस कहहीं ||

बिनु अवसर भी तें रह जोई | जानेहु अधम नारि जग सोई |
पति बंचक परपति रति करई| रौरव नरक कल्प सत परई ||

छन सुख लागि जनम सत कोटि | दुःख न समझु तेहि सम को खोटी |
बिनी श्रम नारि परम गति लहई | पतिब्रत धर्म छाडी छल गहई ||

पति प्रतिकूल जनम जहं जाई | बिधवा होई पायी तरुनाई ||

माता ने कितनी सुन्दर व्याख्या करी है , मन की गति , क्षण भंगुर सुख के लिए अपने नैतिक मूल्यों को त्यागना , ऐसी स्त्री की बाद में होने वाली गति -- माता कहती है की सबसे उत्तम पतिव्रता स्त्री वही है जिसके मन में अपने पति के अलावा और कोई पुरुष कभी आता ही नहीं है | वह अपने पति , अपने घर ,परिवार के उत्थान के अतिरिक्त और कुछ नहीं सोचती वही उत्तम स्त्री है और दूसरी श्रेणी में वह आती है जो किसी भी परपुरुष को अपने पिता भाई या पुत्र के सामान ही जानती है |
जो धर्म को विचार कर और अपने कुल की मर्यादा की खातिर स्वयं को दूषित नहीं करती वह निकृष्ट गति की स्त्री है और सबसे अधम वह है जो मौका न मिलने के कारण और डर के कारण कुछ गलत नहीं करती |

मनोविज्ञान का इतना अच्छा अध्ययन  - हम जानते हैं की बहुत से लोग सिर्फ इसीलिए कोई गलत काम नहीं करते की उनको पकडे जाने का डर रहता है , बहुत से लोग यह सोचकर की लोग क्या कहेंगे - अपनी वास्तविकता पर मुखोटा लगाये रहते हैं | उनके मन में इच्छा सब रहती है किन्तु भी या लोकलाज के कारण वे गलत मार्ग पर नहीं जाते | ऐसा सिर्फ स्त्रीयों के ही साथ नहीं है बल्कि पुरुषों के साथ भी है और अगर आज का समाज देखें तो हर मोहल्ले में थोड़ी छानबीन करने पर पता चल जाता है की अमुक स्त्री का अमुक पुरुष के साथ अवैध सम्बन्ध है , लोगों को पता भी रहता है किन्तु कोई कुछ बोलता नहीं है |

माता का कहना है की जो वास्तव में निष्कपट है वही सबसे श्रेष्ठ है , और सत्य भी यही है | बाकी तो सब अपने अन्दर के मायाजाल को ढंकने के आवरण ओढ़कर  लोग बैठे रहते हैं की कब मौका मिले और परस्त्री या परपुरुष गामी हो लिया जाय | तो ऐसे लोगों के सही होने का कोई मतलब ही नहीं होता |

स्त्री को तो पति मात्र की सेवा करने से वो मुक्ति सुलभ हो जाती है जो अन्य को कई तप करके भी नहीं होती और उसी को क्षण भर के देहिक सुख लाभ के लिए लोग त्याग देते हैं और बाद में अपने भाग्य को कोसते हैं |
जो जैसा करेगा वैसा भरेगा है | आज के समय में कितने हो परिवारों में यह स्थिति बनी हुई है कोई नहीं जानता किन्तु ये लोग जिए जा  रहे हैं -- लोगों को पता चलेगा तो क्या हो जाएगा - यह सोचकर नार्किक जीवन भुगत रहे हैं |

जीवन के हर दुःख का मूल अपना अहम् स्वार्थ छल प्रपंच है --इसको त्याग कर प्रभु श्री राम के चरणों में अपना ध्यान केन्द्रित करें और इस मूर्खतापूर्ण बेमतलब जीवन में प्रभु प्रेम की ज्योति जलाएं .

                                           श्री राम जय राम जय जय राम


   

रामचरित मानस में स्त्री धर्म और वर्तमान स्थिती-2

धीरज धर्म मित्र अरु नारी | आपद काल परखियही चारी ||
ब्रद्ध रोगबस जड़ धनहीना | अन्ध बधिर क्रोधी अति दीना ||
ऐसेहु पति कर किएँ अपमाना | नारि पाव जमपुर दुःख नाना |
एकई धर्म एक ब्रत नेमा | कायं बचन मन पति पद प्रेमा ||

माता अनुसुइया कहती हैं की स्त्री का सबसे बड़ा धर्म पति की सेवा करना है , तन मन वचन से पति की सेवा ही सर्वोपरी मार्ग है | और जो स्त्री अपने पति का अपमान करती है , भले ही उसका पति अँधा , बहरा , क्रोधी , मूर्ख अथवा निर्धन ही क्यों न हो - वह स्त्री मरणोपरांत नरक में अनेको यातनाएं झेलती है | 

नरक और स्वर्ग किसी ने भी नहीं देखा तो फिर गोस्वामी जी ने ऐसा क्यों लिखा ? वस्तुतः इसका कारण यही हो सकता है की पहले जो विवाह हुआ करते थे उसमें स्त्री की रजामंदी नहीं ली जाती थी , और विवाह के पश्चात स्त्री को उसके हाल पर छोड़ दिया जाता था | जो भी मेरी मंद बुद्धि है उसके अनुसार ही मैं सोच सकता हूँ और प्रभु श्री राम से क्षमा प्रार्थी हूँ यहाँ भी हमेशा ही | 
हमारा धर्म कहता है की दुःख झेलने की शक्ति और सहन शीलता सभी मनुष्यों में होनी चाहिए और दुःख वास्तव में पूर्व जन्म के कर्मों का फल ही हैं और कुछ नहीं , अतः अगर किसी स्त्री को पति इस प्रकार का भी मिलता है तो उसका धर्म है की किसी भी स्थिति में पति का आदर करे क्योंकि यह सब उसके पूर्व्कर्मों के फल से ही हुआ है | और जो भी स्त्री इस धर्म को हर स्थति में पालन करती है उसके भवबंधन ही कट जाते हैं | ऐसा उनका विचार होगा - ये मेरी सोच है | 

मनुष्य  जीवन ही प्रभु प्राप्ति के लिए हुआ है तो फिर सुख दुःख से डरना कैसा ? ये तो सागर है जिसमें कभी सुख की  कभी दुःख की लहरे आनी ही हैं | 

किन्तु आज हम देखते हैं की पति चाहे जैसा भी हो स्त्री क्लेश्कारिणी अधिक होती जा रही है , न की घर परिवार के सुख दुःख के बारे में सोचने वाली | वह अपने मायके को ससुराल में ढो लाती है अर्थात उसके घर वालों का हस्तक्षेप पति के घर में होने लगता है और फिर वोही दुःख भरी कहानी शुरू होती है जिसका अंत न्यायलय में जाकर होता है |
आजकल विवाह करना किसी देश से युद्ध करने से अधिक खतरनाक हो चूका है , युद्ध में तो हार या जीत , जीवन या मरण   होना ही है किन्तु विवाह गलत स्त्री से हो जाय तो रोज़ मरण रोज़ हार रोज़ अपमान ही होना है | और ऐसे जीवन से बेहतर है अकेले रहना और अपने जीवन के लक्ष्य की ओर अग्रसर रहना | 

एक दुश्चरित्र स्त्री  की पत्रिका



अगर देखेंगे तो इस पत्रिका में गुरु उच्च का है और हंस योग बना रहा है , मंगल भी स्वराशी का है और मांगलिक पत्रिका भी नहीं है किन्तु इस जातिका ने अपने पति को इतना अपमानित करा की पति पूर्ण असहाय है और तिल तिल कर जी रहा है सिर्फ इसलिए की वह अपने पुत्र से अत्यधिक प्रेम करता है |





आज तो वह स्त्री अपने पति को त्रास दे रही है किन्तु इसका परिणाम क्या होगा और उसकी संतान पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा यह उसने नहीं सोचा | स्वर्ग हो या नरक - भुगतना सब यहीं पर है | 
तो बात स्त्री धर्म की थी, ऐसी एक नहीं अनेक स्त्रीयां अपने हिन्दू धर्म का नाश कर रही हैं और समाज के विघटन की पूरी कसरतें करने में लगी हुए हैं | क्या इश्वर वास्तव में ऐसी स्त्रीयों को क्षमा करेंगे ? यह उनपर ही निर्भर करता है |

यदि आपको कोई दुःख है तो सिर्फ श्री राम जय राम जय जय राम भजिये और मन से आसक्ति को त्याग दीजिये , समय के साथ सब ठीक हो जाएगा |